Sunday, March 1, 2009

हाथियों के साथ एक दिन....दुबारे

पिछले साल कूर्ग जाना हुआ (कर्नाटक के मडिकेरी नामक स्थान पर कूर्ग या कोडुगु नाम से जाना जाने वाला एक हिल स्टेशन) इसके बारे में तो हमने सुन रखा था रास्ते में हमें पता ला की यहाँ पर हाथियों का एक ट्रेनिंग सेंटर है जिसका नाम है दुबारे एलिफैंट कैंप है यह एक रिज़र्व फॉरेस्ट है यह मैसूर से लगभग 80 किलोमीटर दूर कुशलनगर के पास कावेरी नदी के किनारे स्थित है। यहाँ मैसूर दशहरा उत्स के लिए हाथियों को प्रशिक्षित किया जाता है। हमने भी वहां जाने का इरादा कर लिया टैक्सी हमें उस स्था तक ले गई जहाँ से हमें कावेरी नदी को नाव द्वारा पार कर के इस कैंप में जाना था। कैंप में छोटे बड़े सभी उम्र के हाथी थे। इस कैंप की सबसे अनोखी बात यह है की यहाँ पर्यटक भी इन हाथियों की दिनचर्या में भाग ले सकते हैं। बच्चे तो यह देख कर उछल पड़े हम भी टिकेट वगैरह ले कर तैयार हो गए। एक एक कर महावत अपने अपने हाथियों को लाने लगे। तीखे ढलान से होकर हाथी नदी की ओर चल पड़े। हम भी पीछे पीछे हो लिए। महावत उनको रगड़ रगड़ कर नहलाने लगे। हाथी भी मजे से पानी में लेट कर अपने महावत को सहयोग देते रहे। सबसे छोटा हाथी जो शायद तीन साल का था वह लेटने के बाद भी बच्चों से ऊँचा था। बच्चों ने उन्हें नहलाने में बड़ा मजा किया। नहाने के बाद सभी हाथी एक नियत जगह पर लाइन में खड़े हो गए जहाँ उनको भोजन दिया जाना था।सबसे छोटा हाथी तीन वर्ष का परशुराम सबसे ज्यादा चंचल था इस कैंप में हाथियों को उनकी नैसर्गिक खुराक जो उन्हें पेड़ पौधों से मिल जाती है उसके आलावा और भी पौष्टिक भोजन दिया जाता है खाने के बाद भी सभी हाथी काफी उत्सुकता से किसी चीज का इन्तजार करते लगे हमने पूछा तो पता चला की उन्हें गुड़ खाना है जो उनको बहुत पसंद है हर बार खाने के बाद उन्हें एक बड़ा सा टुकड़ा गुड का दिया जाता है इसके बाद सभी हाथी अपने अपने स्थान पर लौटने लगे हमने पूछा की यह कहाँ जा रहे हैं तो जवाब मिला अभी तैयार हो कर आयेंगे हम भी उत्सुकता से इन्तजार करने लगे थोड़ी देर के बाद दो बड़े हाथी को उनकी पीठ पर हौदा बाँध कर लाया गया बच्चों ने हाथी की सवारी का आनंद लिया सवारी के बाद हाथी ने अपनी सूंड उठा कर सबका अभिवादन किया हाथियों का कार्यक्रम समाप्त हो गया था वे सभी जंगल की और जाने लगे हम भी नाव द्वारा वापस दूसरे किनारे आगये जहाँ हमारी टैक्सी हमारा इन्तजार कर रही थी एक अनोखे और यादगार अनुभव को अपने दिल में समेट कर हमने वहां से विदा ली


9 comments:

मुंहफट said...

इसे कहते हैं चिट्ठाकारी की लेखकीय जीवंतता. जानकारी से भरपूर और पठनीय संस्मरण. अलग तरह का अनुभव आपने बांटा है. सतही तौर पर पढ़ने में हाथियों का जिंदगीनामा मामूली लगता है लेकिन जब अपने आसपास और परिवेश निकल कर मानसिक दिशा किसी ऐसे एकांत में ले जाती है तो ऐसे दृश्यों, अनुभवों और उल्लेखों की पठनीयता का मजा ही कुछ और हो जाता है.

AMBRISH MISRA ( अम्बरीष मिश्रा ) said...

अच्छा लिखते हो अच्छा दीखते हो
दिखती है ताकत मन के विस्वास की
एक अचछे एहसास की
खाश है ये नाम मेरे लिए
क्यों ये बता नहीं सकता
पर मुलाकात अच्छा लगा
और भी लिखना तो बताना
मिलेगा बात करने का फिर से बहाना








http://www.orkut.co.in/Main#Profile.aspx?uid=12826479070594199197

Vinay said...

बहुत ही मज़ेदार और अनोखा अनुभव रहा होगा, काश हमें भी ऐसा मौक़ा शीघ्र मिले!

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चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें

MAYUR said...

बहुत खूबसूरती के साथ अपने इन शब्दों को बंधा है ,अपना अनुभव बांटने के लिए आभार .

राज भाटिय़ा said...

अरे वाह पहली बार इस बारे पढा, ओर सच मै बच्चो को तो क्या बडो को भी जरुर मजा आयेगा, आप ने इस यात्रा के समरंण हम संग बांटे बहुत ही अच्छा लगा, कभी मोका मिला तो हम लोग जरुर जायेगे.
आप का धन्यवाद

रंजू भाटिया said...

आज सुबह इसको अमरउजाला के ब्लॉग कोना में पढ़ा था अच्छा लिखा है यह यात्रा वृत्तांत आपने

Anonymous said...

जीवंत यात्रा वृतांत।

Arvind Mishra said...

वाह यह तो मजेदार यात्रा रही !

प्रदीप मानोरिया said...

अत्यंत रोचक गंभीर भावो को वहन करती सुन्दर शब्द रचना ... वाह वाह यह ग़ज़ल यदि संगीत बद्ध हो तो सोने पर सुहागा मैंने तो इसको गाकर ही पढा