अभी दो दिन पहले अपनी एक मित्र के साथ किसी काम से घर के पास ही एक बाजार गयी थी। जाते समय हमने देखा कि कुछ औरतें अपने बच्चों के साथ सड़क के किनारे बैठ कर खाने के डब्बे निकाल कर अपने बच्चों को खिला रही हैं और बीच बीच में ख़ुद भी खा रही हैं। माएं अपने बच्चों के साथ खेल रही थीं उन्हें दुलार रही थी, बीचबीच में आपस में कुछ हँसी मजाक भी चल रहा था। उनको देख कर मुझे विचार आया कि ये औरतें शायद मजदूर हैं जो सुबह सुबह खाना बना कर लायी होंगी अब खापी कर काम पर जायेंगी, छोटे छोटे बच्चों को देखा तो लगा कि खेलने खाने की उम्र में ये बच्चे भी अपनी माँ के साथ धूप में भटक रहे हैं इन्हें तो स्कूल में होना चाहिए था। पर सब लोग अपनी अपनी किस्मत से बंधे हैं उनकी नियति यही है। फ़िर लगा कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता माँ तो कम से कम मेहनत कर के अपना और अपने बच्चों का पेट भर रही है। अपनी तरफ़ से वो भी बच्चों को बेहतर जीवन देने की कोशिश करती ही होगी। हमें देर हो रही थी इसलिए अपना काम जल्दी जल्दी निपटाने लगे। लगभग एक घंटे के बाद घर वापस जाते समय ट्रैफिक सिग्नल पर रुके तो देख कर चकित रह गयी........वही माएं अपने अपने बच्चों को लेकर लोगों से भीख मांग रही थी और वो छोटे छोटे बच्चे जो अभी कुछ देर पहले अपनी माँ के हाथों से खाना खा रहे थे एक हाथ अपने पेट पर रख कर अपने मुंह की ओर इशारा कर खाने के लिए पैसे मांग रहे थे........मेरा मन अजीब सा हो गया, मैं जिन्हें कर्मठ माएं समझ रही थी वो पैसे कमाने के लिए अपने बच्चों को आगे कर रही थी, साथ में छोटे बच्चे को देख कर लोग पैसे दे भी रहे थे। ऐसा नहीं कि मुझे पता नहीं कि आजकल भिक्षावृत्ति भी व्यवसाय है पर जो कुछ मैंने अपनी आँखों से देखा उसके बाद मेरे सामने कोई जरूरतमंद आया तो क्या मैं उसकी कोई मदद कर सकूंगी या फ़िर शायद उसे शक की निगाहों से ही देखूंगी।
Monday, March 30, 2009
Tuesday, March 3, 2009
सुपर मॉम नेवर क्राइस !
आप सोच रहे होंगे की यह कैसा शीर्षक है...... बताती हूँ पहले इसकी भूमिका बना लूँ। पिछले कुछ दिनों से मेरे छह वर्षीय जुड़वाँ सुपुत्रों को वायरल बुखार है। अब बुखार है तो स्कूल की छुट्टी पर आदत से मजबूर कि पल भर भी टिक के नहीं बैठते। जितनी देर बुखार ज्यादा रहता है चुपचाप कुछ करते रहते हैं पर जहाँ थोड़ा कम हुआ नहीं कि उधम शुरू। मुहँ का स्वाद खराब है तो खाना खाया नहीं जाता, अब शरीर कमजोर हो गया है इसलिए हर बात पर रोना आजाता है। उनके पीछे भागते भागते मेरी ख़ुद की हालत बीमारों जैसी हो गयी। पर क्या करें काम तो छोड़े नहीं जा सकते यही सोच कर उठी और जैसे तैसे घर को थोड़ा सुधारा। अभी काम ख़त्म भी नहीं हुआ था कि कुछ आराम कर सकूं और कमरे में हंगामा होने लगा तकिये जमीन पर, चादर मुड़ी तुड़ी ........देख कर बड़ा गुस्सा आया। बच्चे बीमार हैं यह सोच कर ख़ुद को शांत करना चाहा उनको तो कुछ नहीं कहा पर ख़ुद रोना आगया। मुझे रोता देख दोनों शांत हो गए, बड़े बेटे ने आकर धीरे से मेरे आंसू पोछे और बोला मत रो सुपर मॉम नेवर क्राइस। मैंने चकित हो कर पूछा कि सुपर मॉम क्या होता है तो बोला कि जब हमको चोट लगती है और हम रोते हैं तो तुम कहती हो कि सुपर मैन नेवर क्राइस। तो सुपर मैन की मम्मी सुपर मॉम ही होगी न। बच्चों के इस भोलेपन पर मैं मुस्करा के रह गयी। सारी थकान पल भर में गायब हो गयी........ और मुझे मुस्कराते देख दोनों ने फ़िर से तकिये फेंकने शुरू कर दिए इस बार तो उनके गिलाफ भी दूर जा गिरे। मेरे नन्हें शैतान
Sunday, March 1, 2009
हाथियों के साथ एक दिन....दुबारे
पिछले साल कूर्ग जाना हुआ (कर्नाटक के मडिकेरी नामक स्थान पर कूर्ग या कोडुगु नाम से जाना जाने वाला एक हिल स्टेशन) इसके बारे में तो हमने सुन रखा था। रास्ते में हमें पता चला की यहाँ पर हाथियों का एक ट्रेनिंग सेंटर है जिसका नाम है दुबारे एलिफैंट कैंप है । यह एक रिज़र्व फॉरेस्ट है। यह मैसूर से लगभग 80 किलोमीटर दूर कुशलनगर के पास कावेरी नदी के किनारे स्थित है। यहाँ मैसूर दशहरा उत्सव के लिए हाथियों को प्रशिक्षित किया जाता है। हमने भी वहां जाने का इरादा कर लिया टैक्सी हमें उस स्थान तक ले गई जहाँ से हमें कावेरी नदी को नाव द्वारा पार कर के इस कैंप में जाना था। कैंप में छोटे बड़े सभी उम्र के हाथी थे। इस कैंप की सबसे अनोखी बात यह है की यहाँ पर्यटक भी इन हाथियों की दिनचर्या में भाग ले सकते हैं। बच्चे तो यह देख कर उछल पड़े हम भी टिकेट वगैरह ले कर तैयार हो गए। एक एक कर महावत अपने अपने हाथियों को लाने लगे। तीखे ढलान से होकर हाथी नदी की ओर चल पड़े। हम भी पीछे पीछे हो लिए। महावत उनको रगड़ रगड़ कर नहलाने लगे। हाथी भी मजे से पानी में लेट कर अपने महावत को सहयोग देते रहे। सबसे छोटा हाथी जो शायद तीन साल का था वह लेटने के बाद भी बच्चों से ऊँचा था। बच्चों ने उन्हें नहलाने में बड़ा मजा किया। नहाने के बाद सभी हाथी एक नियत जगह पर लाइन में खड़े हो गए जहाँ उनको भोजन दिया जाना था।सबसे छोटा हाथी तीन वर्ष का परशुराम सबसे ज्यादा चंचल था। इस कैंप में हाथियों को उनकी नैसर्गिक खुराक जो उन्हें पेड़ पौधों से मिल जाती है उसके आलावा और भी पौष्टिक भोजन दिया जाता है। खाने के बाद भी सभी हाथी काफी उत्सुकता से किसी चीज का इन्तजार करते लगे हमने पूछा तो पता चला की उन्हें गुड़ खाना है जो उनको बहुत पसंद है। हर बार खाने के बाद उन्हें एक बड़ा सा टुकड़ा गुड का दिया जाता है। इसके बाद सभी हाथी अपने अपने स्थान पर लौटने लगे। हमने पूछा की यह कहाँ जा रहे हैं तो जवाब मिला अभी तैयार हो कर आयेंगे। हम भी उत्सुकता से इन्तजार करने लगे। थोड़ी देर के बाद दो बड़े हाथी को उनकी पीठ पर हौदा बाँध कर लाया गया। बच्चों ने हाथी की सवारी का आनंद लिया। सवारी के बाद हाथी ने अपनी सूंड उठा कर सबका अभिवादन किया। हाथियों का कार्यक्रम समाप्त हो गया था वे सभी जंगल की और जाने लगे हम भी नाव द्वारा वापस दूसरे किनारे आगये जहाँ हमारी टैक्सी हमारा इन्तजार कर रही थी। एक अनोखे और यादगार अनुभव को अपने दिल में समेट कर हमने वहां से विदा ली।
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