Monday, March 30, 2009

ट्रैफिक सिग्नल पर.........

अभी दो दिन पहले अपनी एक मित्र के साथ किसी काम से घर के पास ही एक बाजार गयी थीजाते समय हमने देखा कि कुछ औरतें अपने बच्चों के साथ सड़क के किनारे बैठ कर खाने के डब्बे निकाल कर अपने बच्चों को खिला रही हैं और बीच बीच में ख़ुद भी खा रही हैंमाएं अपने बच्चों के साथ खेल रही थीं उन्हें दुलार रही थी, बीचबीच में आपस में कुछ हँसी मजाक भी चल रहा थाउनको देख कर मुझे विचार आया कि ये औरतें शायद मजदूर हैं जो सुबह सुबह खाना बना कर लायी होंगी अब खापी कर काम पर जायेंगी, छोटे छोटे बच्चों को देखा तो लगा कि खेलने खाने की उम्र में ये बच्चे भी अपनी माँ के साथ धूप में भटक रहे हैं इन्हें तो स्कूल में होना चाहिए थापर सब लोग अपनी अपनी किस्मत से बंधे हैं उनकी नियति यही है फ़िर लगा कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता माँ तो कम से कम मेहनत कर के अपना और अपने बच्चों का पेट भर रही हैअपनी तरफ़ से वो भी बच्चों को बेहतर जीवन देने की कोशिश करती ही होगी। हमें देर हो रही थी इसलिए अपना काम जल्दी जल्दी निपटाने लगे। लगभग एक घंटे के बाद घर वापस जाते समय ट्रैफिक सिग्नल पर रुके तो देख कर चकित रह गयी........वही माएं अपने अपने बच्चों को लेकर लोगों से भीख मांग रही थी और वो छोटे छोटे बच्चे जो अभी कुछ देर पहले अपनी माँ के हाथों से खाना खा रहे थे एक हाथ अपने पेट पर रख कर अपने मुंह की ओर इशारा कर खाने के लिए पैसे मांग रहे थे........मेरा मन अजीब सा हो गया, मैं जिन्हें कर्मठ माएं समझ रही थी वो पैसे कमाने के लिए अपने बच्चों को आगे कर रही थी, साथ में छोटे बच्चे को देख कर लोग पैसे दे भी रहे थेऐसा नहीं कि मुझे पता नहीं कि आजकल भिक्षावृत्ति भी व्यवसाय है पर जो कुछ मैंने अपनी आँखों से देखा उसके बाद मेरे सामने कोई जरूरतमंद आया तो क्या मैं उसकी कोई मदद कर सकूंगी या फ़िर शायद उसे शक की निगाहों से ही देखूंगी




13 comments:

डॉ .अनुराग said...

यही जीवन की विवशता है शिखा जी....वहां सड़क के उस पार रोज की जिजीविषा है...रोज का संगर्ष....ये ईश्वर का विधान है किस मनुष्य को किस गर्भ में भेजे .....नहीं मालूम उसका गणित क्या है ..या वो रेंडमली सेलेक्ट करता है या ...वो धर्म वालो के मुताबिक हमारे कर्मो के अनुसार हमें गर्भ देता है....कुछ चीजे हमारे बस में है कुछ नहीं....

Shikha Deepak said...

सही कह रहे हैं अनुराग जी। सहमत हूँ आपसे।

डॉ. मनोज मिश्र said...

यह हकीकत है ,आज आधा देश इन्ही राहों पर है .

अजय कुमार झा said...

dil ko chhoo gayee aapkee lekhanee, achha laga yahan aakar, ab aataa rahungaa.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

इसीलिए आज सुपात्रों को दुत्कारा जा रहा है । क्योंकि भिक्षावृत्ति को आज लोगों ने
व्यवसाय बना लिया है।
भिखारी देख कर ही मन में इसी प्रकार के
चित्र तैर कर आ जाते हैं।
अच्छा संस्मरण है।
लिखती रहें।
बधाई।

Vinay said...

अनुराग जी ने बहुत सही टिप्पणी की है, इससे भी ज़्यादा कोई क्या कहे!

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तख़लीक़-ए-नज़र

राज भाटिय़ा said...

बात आप की उचित है, किसी भिखारी को देख कर दया तो आती है, ओर कुछ देने को भी दिल करता है, लेकिन जब लगता है कि यह तो धंधे के तोर पर ही भीख मांगते है, काम चोर बन कर, तो दुख भी होता है, फ़िर जब इन लोगो के पास खुद खाने को नही तो क्यो बच्चे भी पेदा करते है,लेकिन क्या करे ....

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

dr.anuraag kee baat hi main bhi duhraaungaa...!!

books said...

शिखा जी सड़कों पर भारत की असली तस्वीर दिखाई देती है। इस यथार्थ को प्रगट करने के लिए साधुवाद
अखिलेश शुक्ल्
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पूनम श्रीवास्तव said...

शिखा जी ,
आजकल तो पैसे कमाने के लिए मां बाप अपने बच्चों से कितने तरह के कम करवाते हैं ..कई तो भीख मंगवाने के लिए उन्हें विकलांग तक बना देते हैं ...अपने अच्छा लिखा है.
पूनम

अभिषेक आर्जव said...

"हे ! ईश्वर मै जो बदल सकती हूँ , मुझे उसे बदल देने की शक्ति देना | मै जो नहीं बदल सकती , उसे स्वीकार करने की शक्ति देना |" -----जेन आस्टिन

sandeep sharma said...

nice post ...

Hari Joshi said...

उसका गणित तो समझ से बाहर है लेकिन आदमी अपनी प्रवृत्ति से मजबूर है। रास्‍ते में कुछ ऐसे लोग भी मिलते हैं जो यह कहकर रूपये मांगते हैं कि उनकी जेब कट गई है या उनका फलां हॉस्‍पीटल में है या कुछ ऐसा ही है; और फिर कभी आपको अगले मोड़ पर वही व्‍यक्ति कुछ और कहकर मांगता नजर आता है। शराब पीता नजर आता है।..हम तो यही मानते हैं कि उनका प्रोफेशन हैं। लेकिन ऐसे में कई बार आप किसी सच्‍चे जरूरतमंद की भी मदद करने से हिचक जाते हैं।