Thursday, April 23, 2009

कहानी..........बीज

उसका जन्म हो चुका था..........पर वो संसार के लिया अदृश्य था...........वो जीवन के अन्य रूप की परतों के भीतर छुपा था..........वो एक बीज था। एक विशाल वृक्ष के ढेरों फलों में से एक के भीतर छुपा..........जीवन का आरंभ..........एक बीज। सब कुछ अनोखा था उसके लिए, वो फल की सुरक्षा में प्रतिदिन बढ़ रहा था.........उसका जीवन प्रत्येक दिन के साथ विकसित हो रहा था।

जैसे हर जीव अपने भविष्य से अनजान है, उसे भी अपने आने वाले दिनों का कुछ ज्ञान न था। पर कुछ तो था जो बदल रहा था। बीज हैरान था..........जिस सरसता में वो जी रहा था वो हर दिन के साथ कम हो रहीथी........शुष्कता बढ़ती जा रही थी..........वो सिमटता जा रहा था..........समझ नहीं पा रहा था की क्या हो रहा है और क्या होने जा रहा है..........हर नए दिन के साथ आने वाले दिन की प्रतीक्षा करता रहा।

एक दिन वो हो गया जो उसने सोचा भी न था। फल वृक्ष से अलग हो गया..........गिरते समय शाख से टकराया और टूट गया.........बीज बाहर आगया........उसका आवरण , उसका कवच छूट गया..........हवा के वेग से वो इधर उधर उड़ने लगा.........घबरा गया, डर के मारे और भी सिकुड़ गया..........उसकी रंगत भी भय से पीली पड़ गई। हवा के आगे उसकी एक न चली, वो जहाँ चाहती उसे उड़ा ले जा रही थी, कभी दायें कभी बाएँ कभी ऊपर कभी नीचे..........फ़िर वो एक ही स्थान पर देर तक गोल गोल घूमता रहा..........हवा का वेग कम हुआ और बीज धरती पर गिर गया। वो इतना डर चुका था कि दम साधे पड़ा रहा..........अपनी आँखें भींचे.........अपना शरीर सिकोड़े..........धीरे धीरे उसपर मिट्टी कि परतें पड़ती गयीं..........वो अन्धकार के गर्त में दब सा गया..........एक निर्जीव की भांति जाने कब तक सोता रहा।

फ़िर आकाश में मेघ छाये..........जोर से बिजली कड़की.........मूसलाधार बरसात हुई..........पानी बरसा तो बरसता ही रहा...........पूरी धरती ही भीग गई...........पानी रिसता हुआ मिटटी की परतों को पार कर बीज तक जा पहुँचा। बीज उससे सराबोर हो गया.........उसमें ऊर्जा का संचार हुआ..........अपने अस्तित्व का अहसास हुआ..........धीरे से सर उठाया मिटटी कि परतों को धीरे से खिसका कर बाहर झाँका..............यह क्या!!!!!!!!! इतना उजाला.........सब कुछ धुला धुला............उसके भीतर हलचल होने लगी.........पुराने आवरण टूट गए............भीतर नए जीवन का आरम्भ होने लगा.............नयी कोपलें बाहर आ गयी..........धूप में नहा कर चटख हरा रंग ओढ़ लिया। चारों और देखा तो उसके जैसे ढेरों नए जीवन आकार ले रहे थे............उसका आत्मविश्वास और द्रढ़ होगया...........उसने अपनी जड़ों को और फैलाया, धरती को कस कर थाम लिया। अब वो बीज से एक पौधे में बदल चुका था।

ठंडी हवा का एक झोंका आया.......उसने लहरा कर अपने नए जीवन का स्वागत किया...........अब वो तैयार था.............अनेक रूपों और पड़ावों से होता हुआ कुछ नए बीजों को जन्म देने के लिए..............इस जीवन चक्र को दोहराने के लिए।


Saturday, April 18, 2009

कमाल की कला..........फ़ूड आर्ट!

मेरी किसी मित्र ने मुझे यह तस्वीरें मेल की हैं। आप भी देखिये। हैं न कमाल। पता नहीं इन्हें बनाने वाला कलाकार कौन है, पर वो बधाई का पात्र जरूर है।

















Thursday, April 16, 2009

कहानी........औरत

यह कहानी एक औरत की है............औरत............एक ऐसी औरत जो सभी घटनाओं का केन्द्र थी फ़िर भी उसका महत्त्व किसी ने नहीं समझा और जब समझा तब बहुत देर हो चुकी थी

वो
औरत................एक व्यापारी के घर पैदा हुई...........कन्या रत्न की प्राप्ति घाटे में डूबे पिता के घर में...........जन्म से ही उपेक्षित रहीपिता ने तो कई दिनों तक उसका मुंह ही नहीं देखापर जब धीरे धीरे हालत सुधरी सफलताएं मिलने लगीं तो माँ बेटी के भाग्य को श्रेय देने लगी उसको सराहने लगी.........पिता के दिल में भी कुछ संवेदनाएं जागने लगीं........पर अंहकार ज्यादा बलवान था...........जिस बेटी को सदा अपनी असफलताओं का कारण साबित किया उससे सदा दूरी ही बनाए रखी.........जाने किस बात का आक्रोश था जो बेटी से दो मीठे बोल भी बोलने देतासारा प्यार सालों छोटे भाई के हिस्से में आयाबहन के प्रति व्यवहार में पिता के विचारों की ही छवि रही.............भाई के प्रेम को भी तरसती रही


फ़िर
एक दिन एक सजीला द्वार पर आया..........रीति रिवाजों में बाँधकर अपने घर ले गया...............पहली बार पिता ने खालीपन महसूस किया..........पर देर हो चुकी थी.........अब तो वो परायी हो गयी थी...........भरे पूरे परिवार की बड़ी बहू बन ढेरों जिम्मेदारियों के बोझ तले फ़िर कभी मायके की लाडली बेटी बन कर सकी...........जब भी आयी पीछे पीछे वापसी का बुलावा आजाताएक दिन अचानक पिता का देहांत हो गयामायके आयी तो माँ ने बताया कि उसके जाने के बाद पिता उसकी कमी महसूस करतेरहे..........अन्तिम समय में उसके प्रति अपने व्यवहार पर बहुत पछताए.................उसकी आँखें भर आयीं दिल ने कहा..............काश ऐसा पहले हो गया होता


समय
चक्र चलता रहामाँ भी चली गईभाई ने कभी मधुर सम्बन्ध रखे ही नहींमायके से रिश्ता बस रीति रिवाजों भर का रहापर जब पता चला भाई व्यापार में सब खो चुका है तो माँ से मिली सारी विरासत भाई को दे आयी.............विदेश जाकर एक नई शुरुआत करने को..............भाई ने पहली बार बहन को समझा...........पहली बार जाना कि वो माँ का ही प्रतिरूप है............दिल में प्यार जागा पर फ़िर से देर हो गईभाई पर इस तरह धन लुटाने से पति नाराज हो गए..........मायके से सारे रिश्ते तुड़वा दिए............विदेश जाने से पहले भाई मिलने आया तो द्वार से ही लौटा दिया गया..........उसकी आँखें फ़िर भर आयीं........दिल ने फ़िर कहा काश ऐसा पहले हो गया होतादिल पर पत्थर रख जीती रही औरों के लिए


पति
की नाराजगी जो शुरू हुई तो कभी ख़त्म हो सकीपत्नी की उपेक्षा कर काम में डूबे रहे............घर से ज्यादा समय बाहर बिताते........छोटी छोटी गलती पर भी उसे बुरी तरह लताड़ देतेइकलौता बेटा रईसी के अवगुणों से तो बचा रहा पर उसमें भी माँ के प्रति कभी सह्रदयता नहीं दिखी............एक अजीब सा परायापन पनपता रहाशायद पिता के व्यवहार ने माँ के प्रति उसका नजरिया ही बदल दिया था.........वह विदेश चला गयापीछे पति को जानलेवा बीमारी ने घेर लिया...........रोगशय्या पर कोई मित्र काम आयाउसने जीजान से पति की सेवा करी............पति ने उस औरत में बसी अपनी पत्नी को बरसों बाद पहचाना.............पर पुनः देर हो गई...........संबंधों से सुंदर रूप लेना शुरू भी किया था की म्रत्यु का देवता उसके पति को ले गयाजाते जाते पति ने उसके सर पर प्रेमपूर्वक हाथ रखा...........उसकी आँखें भर आयी दिल ने फ़िर कहा...........काश ऐसा पहले हो गया होतापिता की म्रत्यु का समाचार सुन बेटा आया...........सभी रीति रिवाज पूरे किए पर माँ से कटा कटा ही रहा.............पिता के प्रति अपने सारे धर्म निभा कर वापस चला गयामाँ की पीड़ा को समझे बिना........बांटे बिना..........एक बार मुड़ कर भी नहीं देखा...........अपनी नई दुनिया बसा ली.........उसी में खो गया


एक
औरत की जीवटता कब तक साथ देतीआघातों पर अघात सहते सहते मन के साथ तन भी टूटने लगारोगों से घिर कर बिस्तर पकड़ लिया। बेटे को फुर्सत मिली माँ के पास आने की.............शायद दिल ही कियाअपने काम के सिलसिले में दूसरे देश जाते समय एअरपोर्ट पर मामा मिलेउनसे पता चला की माँ आखिरी साँसें ले रही है.............उसको देखने के लिए ही तरस रहीहै.............मामा से माँ की जीवन कथा सुनी तो बेटे की ऑंखें खुलीं............ .माँ का वो पहलू दिखा जिस पर उसकी उपेक्षा ने परदा डाल रखा थातुंरत ही माँ से मिलने भागा.............जब पहुँचा तो माँ चिता के रथ पर सवार हो चुकी थीबेटा सर थाम कर बैठ गया............आँखों से पछतावे के आँसू बह चले...............असहाय सा चिता की अग्नि को देखता रहा...............और उसकी आत्मा कराह रही थी कि काश ऐसा पहले हो गया होता