यह कहानी एक औरत की है............औरत............एक ऐसी औरत जो सभी घटनाओं का केन्द्र थी फ़िर भी उसका महत्त्व किसी ने नहीं समझा और जब समझा तब बहुत देर हो चुकी थी।
वो औरत................एक व्यापारी के घर पैदा हुई...........कन्या रत्न की प्राप्ति घाटे में डूबे पिता के घर में...........जन्म से ही उपेक्षित रही। पिता ने तो कई दिनों तक उसका मुंह ही नहीं देखा। पर जब धीरे धीरे हालत सुधरी सफलताएं मिलने लगीं तो माँ बेटी के भाग्य को श्रेय देने लगी उसको सराहने लगी.........पिता के दिल में भी कुछ संवेदनाएं जागने लगीं........पर अंहकार ज्यादा बलवान था...........जिस बेटी को सदा अपनी असफलताओं का कारण साबित किया उससे सदा दूरी ही बनाए रखी.........जाने किस बात का आक्रोश था जो बेटी से दो मीठे बोल भी न बोलने देता। सारा प्यार सालों छोटे भाई के हिस्से में आया। बहन के प्रति व्यवहार में पिता के विचारों की ही छवि रही.............भाई के प्रेम को भी तरसती रही।
फ़िर एक दिन एक सजीला द्वार पर आया..........रीति रिवाजों में बाँधकर अपने घर ले गया...............पहली बार पिता ने खालीपन महसूस किया..........पर देर हो चुकी थी.........अब तो वो परायी हो गयी थी...........भरे पूरे परिवार की बड़ी बहू बन ढेरों जिम्मेदारियों के बोझ तले फ़िर कभी मायके की लाडली बेटी बन कर न आ सकी...........जब भी आयी पीछे पीछे वापसी का बुलावा आजाता। एक दिन अचानक पिता का देहांत हो गया। मायके आयी तो माँ ने बताया कि उसके जाने के बाद पिता उसकी कमी महसूस करतेरहे..........अन्तिम समय में उसके प्रति अपने व्यवहार पर बहुत पछताए.................उसकी आँखें भर आयीं दिल ने कहा..............काश ऐसा पहले हो गया होता।
समय चक्र चलता रहा। माँ भी चली गई। भाई ने कभी मधुर सम्बन्ध रखे ही नहीं। मायके से रिश्ता बस रीति रिवाजों भर का रहा। पर जब पता चला भाई व्यापार में सब खो चुका है तो माँ से मिली सारी विरासत भाई को दे आयी.............विदेश जाकर एक नई शुरुआत करने को..............भाई ने पहली बार बहन को समझा...........पहली बार जाना कि वो माँ का ही प्रतिरूप है............दिल में प्यार जागा पर फ़िर से देर हो गई। भाई पर इस तरह धन लुटाने से पति नाराज हो गए..........मायके से सारे रिश्ते तुड़वा दिए............विदेश जाने से पहले भाई मिलने आया तो द्वार से ही लौटा दिया गया..........उसकी आँखें फ़िर भर आयीं........दिल ने फ़िर कहा काश ऐसा पहले हो गया होता। दिल पर पत्थर रख जीती रही औरों के लिए।
पति की नाराजगी जो शुरू हुई तो कभी ख़त्म न हो सकी। पत्नी की उपेक्षा कर काम में डूबे रहे............घर से ज्यादा समय बाहर बिताते........छोटी छोटी गलती पर भी उसे बुरी तरह लताड़ देते। इकलौता बेटा रईसी के अवगुणों से तो बचा रहा पर उसमें भी माँ के प्रति कभी सह्रदयता नहीं दिखी............एक अजीब सा परायापन पनपता रहा। शायद पिता के व्यवहार ने माँ के प्रति उसका नजरिया ही बदल दिया था.........वह विदेश चला गया। पीछे पति को जानलेवा बीमारी ने घेर लिया...........रोगशय्या पर कोई मित्र काम न आया। उसने जीजान से पति की सेवा करी............पति ने उस औरत में बसी अपनी पत्नी को बरसों बाद पहचाना.............पर पुनः देर हो गई...........संबंधों से सुंदर रूप लेना शुरू भी न किया था की म्रत्यु का देवता उसके पति को ले गया। जाते जाते पति ने उसके सर पर प्रेमपूर्वक हाथ रखा...........उसकी आँखें भर आयी दिल ने फ़िर कहा...........काश ऐसा पहले हो गया होता। पिता की म्रत्यु का समाचार सुन बेटा आया...........सभी रीति रिवाज पूरे किए पर माँ से कटा कटा ही रहा.............पिता के प्रति अपने सारे धर्म निभा कर वापस चला गया। माँ की पीड़ा को समझे बिना........बांटे बिना..........एक बार मुड़ कर भी नहीं देखा...........अपनी नई दुनिया बसा ली.........उसी में खो गया।
एक औरत की जीवटता कब तक साथ देती। आघातों पर अघात सहते सहते मन के साथ तन भी टूटने लगा। रोगों से घिर कर बिस्तर पकड़ लिया। बेटे को फुर्सत न मिली माँ के पास आने की.............शायद दिल ही न किया। अपने काम के सिलसिले में दूसरे देश जाते समय एअरपोर्ट पर मामा मिले। उनसे पता चला की माँ आखिरी साँसें ले रही है.............उसको देखने के लिए ही तरस रहीहै.............मामा से माँ की जीवन कथा सुनी तो बेटे की ऑंखें खुलीं............ .माँ का वो पहलू दिखा जिस पर उसकी उपेक्षा ने परदा डाल रखा था। तुंरत ही माँ से मिलने भागा.............जब पहुँचा तो माँ चिता के रथ पर सवार हो चुकी थी। बेटा सर थाम कर बैठ गया............आँखों से पछतावे के आँसू बह चले...............असहाय सा चिता की अग्नि को देखता रहा...............और उसकी आत्मा कराह रही थी कि काश ऐसा पहले हो गया होता।
वो औरत................एक व्यापारी के घर पैदा हुई...........कन्या रत्न की प्राप्ति घाटे में डूबे पिता के घर में...........जन्म से ही उपेक्षित रही। पिता ने तो कई दिनों तक उसका मुंह ही नहीं देखा। पर जब धीरे धीरे हालत सुधरी सफलताएं मिलने लगीं तो माँ बेटी के भाग्य को श्रेय देने लगी उसको सराहने लगी.........पिता के दिल में भी कुछ संवेदनाएं जागने लगीं........पर अंहकार ज्यादा बलवान था...........जिस बेटी को सदा अपनी असफलताओं का कारण साबित किया उससे सदा दूरी ही बनाए रखी.........जाने किस बात का आक्रोश था जो बेटी से दो मीठे बोल भी न बोलने देता। सारा प्यार सालों छोटे भाई के हिस्से में आया। बहन के प्रति व्यवहार में पिता के विचारों की ही छवि रही.............भाई के प्रेम को भी तरसती रही।
फ़िर एक दिन एक सजीला द्वार पर आया..........रीति रिवाजों में बाँधकर अपने घर ले गया...............पहली बार पिता ने खालीपन महसूस किया..........पर देर हो चुकी थी.........अब तो वो परायी हो गयी थी...........भरे पूरे परिवार की बड़ी बहू बन ढेरों जिम्मेदारियों के बोझ तले फ़िर कभी मायके की लाडली बेटी बन कर न आ सकी...........जब भी आयी पीछे पीछे वापसी का बुलावा आजाता। एक दिन अचानक पिता का देहांत हो गया। मायके आयी तो माँ ने बताया कि उसके जाने के बाद पिता उसकी कमी महसूस करतेरहे..........अन्तिम समय में उसके प्रति अपने व्यवहार पर बहुत पछताए.................उसकी आँखें भर आयीं दिल ने कहा..............काश ऐसा पहले हो गया होता।
समय चक्र चलता रहा। माँ भी चली गई। भाई ने कभी मधुर सम्बन्ध रखे ही नहीं। मायके से रिश्ता बस रीति रिवाजों भर का रहा। पर जब पता चला भाई व्यापार में सब खो चुका है तो माँ से मिली सारी विरासत भाई को दे आयी.............विदेश जाकर एक नई शुरुआत करने को..............भाई ने पहली बार बहन को समझा...........पहली बार जाना कि वो माँ का ही प्रतिरूप है............दिल में प्यार जागा पर फ़िर से देर हो गई। भाई पर इस तरह धन लुटाने से पति नाराज हो गए..........मायके से सारे रिश्ते तुड़वा दिए............विदेश जाने से पहले भाई मिलने आया तो द्वार से ही लौटा दिया गया..........उसकी आँखें फ़िर भर आयीं........दिल ने फ़िर कहा काश ऐसा पहले हो गया होता। दिल पर पत्थर रख जीती रही औरों के लिए।
पति की नाराजगी जो शुरू हुई तो कभी ख़त्म न हो सकी। पत्नी की उपेक्षा कर काम में डूबे रहे............घर से ज्यादा समय बाहर बिताते........छोटी छोटी गलती पर भी उसे बुरी तरह लताड़ देते। इकलौता बेटा रईसी के अवगुणों से तो बचा रहा पर उसमें भी माँ के प्रति कभी सह्रदयता नहीं दिखी............एक अजीब सा परायापन पनपता रहा। शायद पिता के व्यवहार ने माँ के प्रति उसका नजरिया ही बदल दिया था.........वह विदेश चला गया। पीछे पति को जानलेवा बीमारी ने घेर लिया...........रोगशय्या पर कोई मित्र काम न आया। उसने जीजान से पति की सेवा करी............पति ने उस औरत में बसी अपनी पत्नी को बरसों बाद पहचाना.............पर पुनः देर हो गई...........संबंधों से सुंदर रूप लेना शुरू भी न किया था की म्रत्यु का देवता उसके पति को ले गया। जाते जाते पति ने उसके सर पर प्रेमपूर्वक हाथ रखा...........उसकी आँखें भर आयी दिल ने फ़िर कहा...........काश ऐसा पहले हो गया होता। पिता की म्रत्यु का समाचार सुन बेटा आया...........सभी रीति रिवाज पूरे किए पर माँ से कटा कटा ही रहा.............पिता के प्रति अपने सारे धर्म निभा कर वापस चला गया। माँ की पीड़ा को समझे बिना........बांटे बिना..........एक बार मुड़ कर भी नहीं देखा...........अपनी नई दुनिया बसा ली.........उसी में खो गया।
एक औरत की जीवटता कब तक साथ देती। आघातों पर अघात सहते सहते मन के साथ तन भी टूटने लगा। रोगों से घिर कर बिस्तर पकड़ लिया। बेटे को फुर्सत न मिली माँ के पास आने की.............शायद दिल ही न किया। अपने काम के सिलसिले में दूसरे देश जाते समय एअरपोर्ट पर मामा मिले। उनसे पता चला की माँ आखिरी साँसें ले रही है.............उसको देखने के लिए ही तरस रहीहै.............मामा से माँ की जीवन कथा सुनी तो बेटे की ऑंखें खुलीं............ .माँ का वो पहलू दिखा जिस पर उसकी उपेक्षा ने परदा डाल रखा था। तुंरत ही माँ से मिलने भागा.............जब पहुँचा तो माँ चिता के रथ पर सवार हो चुकी थी। बेटा सर थाम कर बैठ गया............आँखों से पछतावे के आँसू बह चले...............असहाय सा चिता की अग्नि को देखता रहा...............और उसकी आत्मा कराह रही थी कि काश ऐसा पहले हो गया होता।
18 comments:
is aurat ki kahni ko kya kahun ...bas dil se nikalta hai ki har maa, bahan , bahu ke sath kyun hota hai aisa ....kab samjhenge ....duniyadari ko nibhane wale log
na jaane aur kitani sadiyaa ye kahani chalti rahegi.gazab ka sunder flow hai katha mein.bandh ke rakhta hai pathak ko.bahut badhai.
"कहानी........औरत"
शिखा दीपक जी!
"कहानी........औरत"
जैसी मर्मस्पर्शी कथा को ब्लाग पर लिखने के लिए आप बधाई की पात्रा हैं।
aisa aksar hota hai.. jab tak hame kisi ki ahmiyat ka pata chalta hai, samay beet chuka hota hai..
जिन्दगी को करीब से दिखाती कहानी है, बधाई।
बिन मांगे एक सुझाव, कहानी को छोटे छोटे पैराग्राफ में बाँट दें, तो पढने में सुविधा होगी।
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जादू की छड़ी चाहिए?
नाज्का रेखाएँ कौन सी बला हैं?
तहजीब के लबादे में छिपी औरत ....अब भी वही बैठी है ...
नमस्कार!
आज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला।
वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आप की रचनाएँ, स्टाइल अन्य सबसे थोड़ा हट के है....आप का ब्लॉग पढ़कर ऐसा मुझे लगा. आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी और हमें अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे. बधाई स्वीकारें।
आप मेरे ब्लॉग पर आए और एक उत्साहवर्द्धक कमेन्ट दिया, शुक्रिया.
आप के अमूल्य सुझावों और टिप्पणियों का 'मेरी पत्रिका' में स्वागत है...
Link : www.meripatrika.co.cc
…Ravi Srivastava
E-mail: ravibhuvns@gmail.com
औरत एक कहानी में बदल जाती है ,एक सच लिखा है जो बहुत तरक्की के बाद भी अब तक सच ही है ..बेहतरीन लगी यह .
शिखा जी,
बहुत मार्मिक भावनात्मक कहानी है ....कहानी प्रवाहमय भाषा में लिखी है आपने..बधाई .बस थोडा सा और विस्तार दिया होता आपने तो और अधि प्रभावशाली बन जाती .
पूनम
maun aansu hi tippani hain.....
कौन सुनेगा यही सोच कर, अपने मन की छोड़ न कहना.
कहीं किसी को लगे बुरा ना, यह सोच कर अब छोड़ दे सहना.
--कौतुक
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना!
आप का ब्लाग बहुत अच्छा लगा।
मैं अपने तीनों ब्लाग पर हर रविवार को
ग़ज़ल,गीत डालता हूँ,जरूर देखें।मुझे पूरा यकीन
है कि आप को ये पसंद आयेंगे।
सम्वेदना जागरण में समर्थ कहानी
कलम को बधाई
कहानी पढ़ कर याद आ गई निराला की पंक्तियाँ
आह नारी जीवन तेरी यही कहानी
आँचल में है दूध आँखों में पानी..
आज पहली बार तुम्हारा ब्लाग देखा। पता ही नहीं था कि तुम्हारे अंदर इतनी अच्छी लेखिका छुपी हुई है। यूं ही लिखती रहो। बहुत अच्छा लगा तुम्हारी इस प्रतिभा से परिचय पाकर।
--सारिका
hame bahut hi achha laga..
Hame ye khani achhi lagi...
par is duniya sabhi insaan aise nahi hote...
yadi har samay aisa hota to aaj ye parivartan dekhne ko nahi milta..
Aaj naari har kshetra me aage hai...
Shikha, Her taraf her jagah beshumaar aadmi. Phior bhee tanhaaeyo ka shikaar aadmi.
Likho or likho, tab tak likho jab tak sona aag mai tap kar khara na ho jaaye.
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