बरसात हो रही है.........जमीन पर पड़ती बूँदें.........बनते बिगड़ते बुलबुले.........इन्ही बुलबुलों सी ही तो है जिन्दगी.......एक पल बनती अगले ही पल बिगड़ती पर इन दो पलों के बीच एक पूरी जिंदगी। कश्मकश.......होड़......आपाधापी......संघर्ष.......औपचारिकता, यही जिंदगी के पर्याय बन गए हैं। लड़का हो या लड़की.........पैदा होते ही जीने की जद्दोदहद.........चीख चीख कर सांस खींच कर जिंदगी की शुरुआत........माँ की उंगली का सहारा ले कर पहली बार खड़ा होना, वो पहला कदम........माँ बाप के साथ जिंदगी की इसी भगदड़ में शामिल हो जाता है। आज स्कूल में दाखिला........फ़िर खेल कूद में ईनाम.........गायन भी तो सीखना है........अरे ! क्रिकेट क्लास तो रह ही गई........थोड़ा सा ठहराव..........फ़िर नया संघर्ष...........नौकरी ढूँढने का, लग जाय तो उन्नति..........विदेश कैसे जाऊं..........हाय कहीं कोई मुझसे आगे न निकल जाय..........उसको पछाड़ दिया..........इसको पीछे छोड़ दिया..........बड़ी उपलब्धि........तब एक और नई जिंदगी साथ जुड़ जाती है इसी आपाधापी में वही भगदड़ वही मारामारी.......बच्चे हुए तो किस्सा शुरू से शुरू.........सारे रिश्ते नाते औपचारिकता भर रह गए। यहाँ तक की खुशियों के साथ भी औपचारिकता ही निभाते रहे। मनाया तो हर एक छोटी से छोटी खुशी का भी बड़ा सा जश्न, पर उसके पीछे भी कुछ जोड़तोड़........कहीं दिखावा........कभी होड़........कभी किसी की खुशामद.......कभी किसी पर एहसान। जिंदगी काट ली, जी नही.......पर हाय यह क्या !!!!!!!! सब थम गया........बुलबुला तो फूट गया........ढेरों नए बनते बिगड़ते हैं पर वो वाला कहाँ है ?????????? वो तो विलीन हो गया उसी अनंत में जहाँ से आया था।
फ़िर क्या मायने रखती है यह अंधी दौड़.........जहाँ आदमी आदमी के सर पर पाँव रख कर ऊपर बढ़ने में लगा है.........इन बनते बिगड़ते बुलबुलों को देख कर यही सोच रही हूँ। क्योंकि इन्ही में से एक बुलबुला मैं भी तो हूँ।
फ़िर क्या मायने रखती है यह अंधी दौड़.........जहाँ आदमी आदमी के सर पर पाँव रख कर ऊपर बढ़ने में लगा है.........इन बनते बिगड़ते बुलबुलों को देख कर यही सोच रही हूँ। क्योंकि इन्ही में से एक बुलबुला मैं भी तो हूँ।
22 comments:
ji han zindagi bulbule si hi hai......na jaane kab foot jaye........badhiya likha hai.
aapne jindgi ki sachachai ko bahut hi najdeek se bataya hai. mai chahuga ki jindgi ki kuch achchhe anubhav ko bhi vayakt kre.
पानी केरा बुलबुला असमनुष्य की जात
देखते ही छिप जायेगा ज्यूं तारा प्रभात
फ़िर भी जब तक जिन्दगी है हम इसके अस्तित्व से इन्कार नहीं कर सकते और इसके अस्तित्व को हमेशा हमेशा जिन्दा रखने के लिये कुछ अच्छा और अलग करने की आवश्यकता सदा रहेगी.
Bahut bahut sahi kaha...
क्योंकि इन्ही में से एक बुलबुला मैं भी तो हूँ .... सार्थक चिंतन की ओर ले जाने वाले इन शटदों के लिये आभार ..
zindgi ko bayaan kar diya aapne
hubaab see zindagii hai
इन बुलबुलों के जरिये इनकी जिंदगी की सच्चाई अभिव्यक्त की है . बहुत सुन्दर . आपकी पोस्ट की चर्चा समयचक्र में
सच्ची रचना!
सही कहा आपने ज़िन्दगी एक बुलबुला ही है .सुन्दर
जिन्दगी एक बुलबुला ही तो है।
इस बरसात में हम भी भीग गए।
बहुत अच्छा लिखा है आपने । आपका शब्द संसार भाव, विचार और अभिव्यिक्ति के स्तर पर काफी प्रभावित करता है ।
मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-फेल होने पर खत्म नहीं हो जाती जिंदगी-समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
bulbulon ko lekar aapne is shabd chitr men pura jeevan darshan hee prastut kar diya hai .bahut achchha laga apke shabdon ko padhkar.
Poonam
.... सार्थक चिंतन
shaandaar shikhaa jee lekin kyaa baat hai bahut din se koee naee post hee naheen. sab theek to hai?
कभी-कभी तो यूँ सोचने में बेशक कैसा-सा तो लगता है....मगर यह भी तो सच है कि उसके बाद हम वहीँ...उन्हीं चीज़ों में उलझे रह जाते हैं....गोया कि यही हमारा चुनाव है....!!
Sahi kaha,zindagi ek bulbula.
Think Scientific Act Scientific
वाकई बुलबुला है जीवन. बहुत ही रोचक रचना.
मेरे ब्लॉग (meridayari.blogspot.com) पर भी आयें.
बहुत सही, जिन्दगी एक बुलबुला ही तो है
nice post !!!
really liked that !!!
plz visit my blog too ...hope ull like it !!
www.classicshayari.blogspot.com
www.rashtrakavi.blogspot.com
bahot hi acchi rachana hai. Badhai
akhilesh shukla
http://katha-chakra.blogspot.com
bilkul sahi kaha aapne.
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