समझ में नहीं आता!! तू मेरी ही जिंदगी है न........सिर्फ मेरी........फिर भी मेरा तुझ पर कोई इख्तियार नहीं.....क्या फर्क है तुझमें और दुनिया वालों में.........न वो मुझसे पूछते हैं कि मैं क्या चाहती हूँ...........न तू कभी यह देखती है कि मैं किन उम्मीदों के साथ तेरी तरफ देख रही हूँ............या तू सब समझ कर भी अनदेखा कर देती है..........मानाकि तुझे उस ऊपरवाले ने बनाया है............तेरे वज़ूद का एक एक लम्हा खुदा ने खुद अपने हाथों मेरी तकदीर की कलम से लिखा है........जिसे उसके आलावा कोई भी बदल नहीं सकता......तू भी नहीं........पर तू मेरे लिए उससे एक गुजारिश तो कर ही सकती है........कर सकती है न??????
मैंने तो अपनी तरफ से हमेशा तुझे सवाँरकर सलीके से रखने की कोशिश की है......अब तक तुझसे कुछ भी नहीं माँगा..........क्या तू मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकती ? मेरी ओर से उससे एक बार इतनी इल्तजा कर के तो देख, शायद वो मान ही ले......मुझे बस कुछ पल दे दे............ज्य़ादा की हसरत नहीं है...........कुछ छोटी छोटी तमन्नाएँ जग गयी हैं........बस कुछ पल चैन की सांस ले लूं........कुछ पल आँख बंद करूं और मेरे दिल की तड़प को थोड़ा सा सुकून आजाये...........बस दो चार धडकनें थम थम के आहिस्ता से आजाये..........इन्तजार से थकी बोझिल नज़रों में वस्लेयार से थोड़ी सी चमक आजाये...........कई दिनों से जागती हुई रातों में कुछ पल के लिए नींद आजाये........बस इतना ही......मेरी ख्वाहिशें ज्यादा ऊंची नहीं हैं कि तू चाहे और पूरा ही न कर पाए............बस कुछ देर के लिए रस्मों रवायतों का वास्ता न दे.........फर्ज की बेड़ियाँ न पहना.........कुछ देर के लिए इनके लबादे उतार लेनेदे.......... ऐ मेरी जिन्दगी इतना तो करेगी मेरे लिए.........बस इतना.........तेरी कसम फिर कुछ न मांगूगी....कुछ न चाहूंगी।
बस कुछ देर जीना चाहती हूँ..........थोड़ा सा जी लेने दे।
4 comments:
to jee lo sab tension chhod ke
dard ko bhi savikaar karo khushi aur hansi ki tarah
अपने मनोभावो को बहुत सुन्दर सब्द दिए हैं.....यही उम्मीद तो हमे हिम्मत देती है है कि वह सुबह कभी तो आयेगी.....
पल्टो रवायतो के कुछ ओर सफ्हे
गिरायो इक ओर रूह
दफ़न कर दो एक ओर लाश
तहज़ीब के लबादे मे.........
ख़ामोश रहकर भी किस कदर डराती है.
जो गुज़र गए हैं लम्हे " नाशाद "वो ना कभी लौट कर आयेंगे
ढूंढ खुद ही में खुशनुमा लम्हा खुद को ख़ुशी से तरबतर करले
खुद में ही ख़ुशी ढूंढना है और जी भर के जीना है. मेरो तो बस यही फलसफा है.शिखाजी. एक बार आजमा कर देखिये. निराशा हाथ नहीं लगेगी.
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