लड़की बन कर पैदा होना ही शायद. एक अभिशाप है जन्म से ही नीयति कदम कदम पर परीक्षाओं के जाल बिछाती चली जाती है......जिन्दगी हर मोड़ पर ढेरों लक्ष्मणरेखाएं खींच देती है......इन सब से जूझते हुए अपने स्व को बचा कर जीना ही औरत का भाग्य है।
वो भी जिन्दगी के इस खेल से अछूती न रह सकी......वो......वो लड़की!!!
उसका जन्म एक संभ्रांत परिवार में हुआ.........बाप दादा का नाम दूर दूर तक मशहूर था.......उसका जन्म माँ पिताजी की बरसों की प्रार्थनाओं का फल था इसीलिए उसके लड़की होने पर यूँ तो किसी ने प्रतिक्रिया न की पर पर वो बेटा तो न थी...........वो थी माँ पिताजी की लाडली.......जो चाहती मिल जाता.......पर जीती नज़रों के सख्त पहरे में थी...........शहर के नामी स्कूल में नाम लिखाया गया........जिन्दगी घर से स्कूल और स्कूल और घर के बीच सीमित रही........न दोस्तों के घर जाने की छूट ही न ही उनको घर बुलाने की..........सच पूछो तो उसको दोस्त बनाने की ही इजाज़त न थी......बस उसके गुड्डे गुडिया और खिलौने ही उसके संगी साथी थे........अक्सर वो अपने इस अकेलेपन से घबराकर रो पड़ती ........
समय गुजरता गया........खिलौनों से खेलने की उम्र पीछे छूट गयी...........माँ घर गृहस्थी के काम सिखाने लगी..........घर में बैठे बैठे ढेरों हुनर हाथों में आगये........पर अकेलापन अब भी वही.........अब उसके साथी बदल गए.........गुड्डे गुड़ियाँ अलमारी की शोभा बन गए और हाथों में किताबें और कलम आगये.........पढने लिखने के नए शौक ने उसमें कुछ संतोष भर दिया.........पर ह्रदय और ह्रदय की भावनाएं कब किसी बंधन को मानती हैं...........डरते झिझकते उसने भी अपने घर की चहारदीवारी के पार कि दुनिया में बिखरे रंगों को देखने कि कोशिश की..........पर वो तो ठहरी लड़की........उसकी नन्ही सी चाहत पूरा होना भी उसको बदा न था..........जाने किसकी बुरी नज़र उसको लगी जो निर्दोष पर ऊँगली उठा दी गयी...........वो कुछ समझ भी न पायी उससे पहले ही उसपर तमाम बंदिशों का बोझ लाद दिया गया.............पंछी के उड़ने से पहले की पंख काट दिए गए...........फूल खिलने से पहले ही मुरझा गया..........जीवन के इस आघात ने उसको तोड़ कर रख दिया............अंजानो ने जो किया उसका ज्यादा गिला नहीं था उसे........पर चहारदीवारी की कैद में भी उसकी चौकीदारी करती अपनों की नज़रें वो बर्दाश्त न कर पाती...........उसकी आत्मा लहूलुहान हो गयी.............पर किसी के पास उसकी पीड़ा का कोई मरहम न था..........
तकलीफें जब कुछ कम हुई तो उसने जीने के नए रास्ते खोजने शुरू किये.........बड़े मान मनुहार के बाद घर से ही पढाई पूरी करने की इजाज़त मिली.........सब कुछ भुला कर अपने आप को किताबों में झोंक दिया..........उसकी मेहनत और नतीजों ने माँ पिताजी का मन कुछ पिघला दिया.........आगे पढ़ाई की राह मिल गयी.........पर इस सब ने उसको इतना बदल दिया कि वो समय से पहले ही बड़ी हो गयी.........अपने हमउम्र के बीच भी सदा संजीदा ही दिखती.........न साज सिंगार न ही कोई उत्साह............ऐसा लगता जैसे अपने आप को ढो रही है...........
समय के साथ हर किसी की सच्चाई सामने आही जाती है..........माता पिता के सामने उन लोगों की हकीकत भी आगई जिनके बुने ताने बाने में वो उलझ गए थे.........जिनकी बातों में आकर उन्होंने अपनी ही बेटी पर सवाल उठा दिए थे.........और अपनी उस बेटी ही सच्चाई भी उनकी आँखों के सामने थी..........जिसने चुपचाप उन सभी गलतियों की सजा भुगती जो उसने कभी करी ही नहीं थी..........जो बीत चुका था उसको बदला तो नहीं जा सकता था..........
समय का पहिया और आगे बढ़ा..........नए नए लोग मिले नए रिश्ते जुड़े...........अब वो हंसती थी बोलती थी...........सजती संवारती भी थी..........उसकी छवि एक खुशहाल और हंसमुख लड़की की थी...........लोग उसके साथ बड़ी जल्दी घुलमिल जाते........वो भी उनको अपना समझ उनपर अपनी जान लुटाती रहती.........अब उसके आस पास लोगों की भीड़ थी............पर उस भीड़ में उसको समझने वाला अब भी कोई नहीं था.........कोई भी ऐसा न था जो उसमें उसको केवल उसको देखता.......सब अपने अपने नज़रिए अपनी अपनी ज़रुरत की नज़र से उसको देखते और समझते थे...........वो भी उन्हें यही समझने देती..........वो अब भी अकेली थी..........भीतर की घुटन अब भी दिल की गहराइयों में जमी थी..........उसके दिल में छुपे इस दर्द को कोई नहीं जानता था.........किसी को कभी कोई भनक ही न हुई कि इस हँसते मुस्कराते चेहरे के पीछे आंसुओं के समंदर छुपे हैं..........
जिन्दगी के अनुभवों ने उसको बहुत संवेदनशील बना दिया...........कोई जरूरत में है.........किसी को कोई तकलीफ है........उसकी नज़रों से बच नहीं पता..........और जब उसकी नज़र पड़े जाए फिर कोई आभावों में रह नहीं सकता..........उससे जो बन पड़ता वो करती.........जो खुद नहीं कर पाती उसके लिए दूसरों से मदद माँग लेती..........उसकी शख्सियत के इस पहलू ने उसको बड़ा नाम दिया.............बहुत लोग उसके करीब आते गए........सब अपने अपने तरीके से उससे अपनी भावनाए अपना प्यार जताते..........कोई भाई बन के खड़ा था तो कोई बहन...........कोई उसको अपना दोस्त कहता तो कोई उसको माँ का दर्जा देता..........जिन्दगी खुशहाल लगने लगी.............पर क्या जो दिख रहा था वो सच था..........
नीयति कभी उसके लिए रहमदिल साबित न हुई..............एक दिन हकीकत के पार का सच सामने आ ही गया...........एक दिन जब फिर से उसकी अच्छाई पर सवाल उठाये गए............उसकी नीयत पर शक किया गया..........तब उसने अपने चारों ओर अपनों की भीड़ की ओर उम्मीद से देखा...........जब उसको लोगों की जरूरत पड़ी तो तो उसको ये माँ बहन या दोस्त कहने वाले कहीं नज़र नहीं आये.........
वो सब उसी भीड़ में गुम हो गए जो तमाशाई बन के उसके चारों ओर खड़ी थी..........उस भीड़ में उसका कोई नहीं इस बात का गम तो कम था जो बात दिल में नश्तर सी चुभती थी वो यह कि जिन पर वो दिल ओ जान लुटाती रही वो उसी भीड़ का हिस्सा बने नज़र आ रहे थे...............पीड़ा सहनशक्ति की सीमा लाँघ चुकी थी............वो जो सबके जीवन में रंग भरती रही........सब के दुःख सुख बाँटती रही..........आज दर्द के सागर में डूब गयी थी.............रिश्तों पर से उसका विश्वास उठगया..........उम्मीदों ने उसका साथ छोड़ दिया..........अकेलेपन से जयादा भयावह अकेलेपन का एहसास होता है...............वो इसी एहसास से घबरा गयी...........दिल और दिमाग के बीच..........देखने और समझने के बीच के समन्वय बिगड़ गए...........लोगों और आवाजों से परिचय ख़त्म हो गया..........वो बिलकुल खामोश होगयी..........चुपचाप घंटों शून्य में जाने क्या देखती रहती..........वो जो कभी लोगों के लिए ख़ुशी और उल्लास का पर्याय थी............आज गम में अन्धकार में खो गयी............ईश्वर इतना निर्दयी कैसे हो सकताहै............क्या इस दुनिया में उसका हाथ थामने वाला कोई नहीं आया.........
आखिरकार उस विधाता का दिल भी पसीज ही गया..........उसके जीवन में एक शख्स आशा की किरण बन कर आया...........उसने लड़की को अन्धकार की गर्तों से बाहर निकला..........उसका हाथ थाम कर उसे जिन्दा होने का एहसास दिलाया.........दुनिया के आगे उसकी ढाल बन कर खड़ा हो गया...........उसके खिलाफ बोलने वालों के आगे उसकी अच्छाइयां गिना कर उन लोगों को खामोश कर दिया...........उसके खुले दिल से किये गए कामों को याद दिला कर उनकी जबानों पर ताले जड़ दिए..........उसमें छुपे हुनर से उसकी फिर से पहचान कराई...............धीरे धीरे उस में फिर से आत्मविश्वास की बेल जड़ पकड़ने लगी..........उसके चेहरे पर फिर से रौनक लौटने लगी..........अकेलेपन का बोझ मिटने लगा...........जीवन में ढेरों रंग बिखरने लगे............खुशियों की बरसातें होने लगी...........उसने अपने आप को उस शख्स की नज़र से देखा तो पहली बार खुद में छुपी अपनी ही असल शख्सियत से रूबरू हुई...........खुद को पहली बार पहचाना...........उसके साथ ने उसमें नयी जान डाल दी...............
अब वो उसके साथ अपने संसार में खुश है..........दोनों के बीच का ये खूबसूरत रिश्ता दिनों दिन और भी निखरता जा रहा है..........वो अब खुश रहती है...........घुटन भारी जिन्दगी बहुत पीछे छूट गयी है............दुःख तकलीफों की बातें पुरानी हो गयी हैं...........खुले दिल से खिलखिला कर हंसती है वो.............जिन्दगी को सच में जीने लगी है अब.............वो लड़की.......
Sunday, December 19, 2010
Tuesday, December 14, 2010
लौट आओ......
लौट आओ कहाँ हो............. तुम बिन मेरी जिंदगी कितनी रीती रीती सी है...........कोई रंग नहीं कोई रौनक नहीं...............सब फीका सा बेमानी सा लगता है.............तुम कहाँ चले गए हो.........क्यूँ रूठे हो..........मुझसे यूँ रूठने की तुम्हारी आदत तो बड़ी पुरानी है............ज़रा ज़रा सी बात पर रूठ जाना और फिर मेरा तड़प कर तुमको मानना............यह सिलसिला उतना ही पुराना है जितनी तुम्हारी मेरी पहचान...............पर इस बार यूँ रूठ जाओगे मैंने सोचा भी न था...........एक बार मान जाओ.........एक बार आजाओ..........आके बता तो जाओ कि मेरी भूल क्या है............मुझसे क्या गलती हो गयी जो तुमने मुझे यूँ अपने से दूर रहने की सज़ा देदी........कितने साल हमने साथ साथ गुजारे हैं..............तुमको मेरी छोटी छोटी बातों का मेरी हर जरूरत का कितना ख्याल रहता था..........तुमको पुकार भी न पाती थी और तुम मेरे सामने होते थे...............तुम थे तो कभी जिंदगी में किसी और की ज़रुरत ही नहीं पड़ी..........कभी किसी को एहमियत ही नहीं दी...............कभी किसी और से जुडी ही नहीं.............. मुझको तुम्हारी आदत हो चुकी है...........कि अब तुम्हारे बिना जीना बड़ा ही दुश्वार लगता है............तुम ही तो मेरी जिंदगी कि धुरी थे.............. पर आज तुम मुझे यूँ छोड़ कर क्यूँ चले गए.............क्या तुमको मेरी याद नहीं आती...........क्या तुमको अब मेरा ख्याल नहीं................क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारे बिना मेरा क्या हाल होगा..........हमारा रिश्ता इतना कमजोर तो कभी न था कि हालात की एक हलकी सी आंधी उसको यूँ बिखेर दे.........वो जादूगर की कहानी याद हैं न जिसकी जान उसके तोते में रहती थी ..........तुम जानते हो न कि बस वैसे ही तुम में मेरी जान बसती है..........अब जब तुम नहीं हो तो मैं भी बेजान सी हो गयी हूँ ........तुम्हारे बिना मैं कितनी अकेली हो गयी हूँ...........तुम जानते हो न कि मेरे दिल और मेरी जिंदगी में तुम्हारी क्या जगह है...........फिर तुम ऐसा क्यूँ कर रहे हो..........क्यूँ मुझसे इतनी दूर चले गए हो..........कहाँ हो वापस चले आओ.........लौट आओ...........
मैं हार गयी...........
अपने आप को हारा हुआ महसूस कर रही हूँ...........ये जिंदगी ने मुझे किस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दियाहै.........मेरे अपने अस्तित्व पर सवालिया निशान लग गया है............तुमको लगता है कि मैं तुमसे दूरियां बढ़ा रही ......... न न..............ये न कहना कि ऐसा नहीं है........पिछले दिनों तुम्हारी बातों में मुझको इसका इशारा मिल गया.............हालांकि ये सही है कि तुमने कभी खुले शब्दों में ये बात नहीं कही..........सच कहूं तो मैं तुमसे दूरी नहीं बना रही..........तुम मुझे उतने ही करीब और अपने लगते हो जितने पहले.........जब तुम मुझे मिले तो मैं बड़े अज़ाबों में घिरी थी...........टूट कर बिखरने की कग़ार पर थी.............जिंदगी में ऐसे धक्के खाये थे कि संभलने की हिम्मत ही नहीं जुटा पारही थी.............ऐसे में तुम मेरी जिंदगी में आये.............मैं बड़े अचरज में थी.............अपने दिल का जो दर्द मैंने बड़ी मेहनत और सफाई से सारी दुनिया से छुपाया था..........जिसे मेरे करीब रहने वाले भी जान न पाए..............उसे तुमने चंद मुलाकातों में ही कैसे पढ़ लिया...........जल्दी ही मुझको इसका जवाब मिल गया............जब मुझे ये पता चला कि तुम भी उसी दर्द से गुज़रकर आए हो जिसमें मैं डूबी थी...............फिर तो हमारे बीच एक अनोखा रिश्ता बन गया..............दर्द का रिश्ता.............जिसका कोई नाम नहीं.............जिसे कोई नाम दिया भी नहीं जा सकता.............जो सभी दुनियावी रिश्तों से कहीं ज्यादा गहरा ख़ूबसूरत और पाक़ था। इस रिश्तें में न कोई बंधन थे..........न औपचारिकता और न ही अपेक्षाएं.............मैंने अपनी जिंदगी का हर पन्ना तुम्हारे सामने खोल कर रख दिया..........तुमने भी अपना हर दर्द मुझसे बांटा..............तुम से मिल कर मैं जी उठी..............वो तुम ही थे जिसने मुझे मेरे अपने ही वजूद का एहसास कराया..............तुमने मेरा जीवन खुशियों से भर दिया............इतनी खुशियाँ दी कि वो मेरे आँचल से छलकने लगीं...............मैं तो मैं मेरे आस पास रहने वाले भी इस बरसात से सराबोर होने लगे..............तुम धीरे धीरे मुझे इतने अपने लगने लगे कि मैं जाने अनजाने हर समय उपरवाले से तुम्हारे लिए चैन और सुकून की दुआ करने लगी............हर पल यही कोशिश रहती कि ऐसा कुछ करूं जो तुमको उन दर्द भरी यादों से राहत दिलाये.............जो भी मेरे बस में था मैंने किया.............जो भी मुझे ठीक लगा मैंने किया.............तुमको हँसते बोलते देख कर लगने लगा कि तुम अब उन तकलीफों के पाश से निकलने लगे हो............तुम्हारी बातों में कड़वाहट धीरे कम होने लगी..............मुझको लगा कि शायद अब यहाँ फिर से प्यार और चैन के बीज फूटेंगे ............पर मुझसे जाने कहाँ कमी रह गयी...........उस दिन मुझे मेरी हार महसूस हुई.............जब मेरे किसी सवाल के जवाब में तुमने फिर से अपने अतीत को फिर से याद किया...............उन सब बातों को फिर से दोहराया...............मुझे तकलीफ इस बात की नहीं कि तुमको वो सब बातें याद हैं.............वो सब लोग याद हैं............ये उम्मीद कभी नहीं की कि तुम सब कुछ यूँ ही भूल जाओगे.............जानती हूँ समझती हूँ................ इतनी गहरी चोट का असर इतनी आसानी से नहीं जाता............मुझे तकलीफ इस बात से हुई तुम उन बातों को आज भी उसी शिद्दत से याद करते हो..............चोट का एहसास अब भी उतना ही है...........दर्द कि गहराई अब भी उतनी ही है..............दिल की तड़प वैसी ही है............आक्रोश भी उतना ही है............ये सब देख कर मैं सोच में हूँ जिसने मेरी जिन्दगी में इतनी मिठास भरी में उसकी जिंदगी से कड़वाहट के चंद कतरे भी कम न कर पायी..............क्या हक है मुझको तुम्हारी दोस्ती पर......... इस रिश्ते पर............मेरे करीब होने का क्या औचित्य है..........मेरे दूर रहने से क्या फर्क पड़ता है.............मैं तुम्हारे लिए कुछ न कर पायी............मुझे माफ़ कर दो..........मैं इस रिश्ते की कसौटी पर खरी न उतर सकी............मैं हार गयी।
Subscribe to:
Posts (Atom)